उसकी अप्रकाशित कृति के आधार पर जर्मन पादरी पौलिनस ने 1790 में संस्कृत का व्याकरण प्रकाशित किया जिसका नाम “सिद्ध रुबम्” स्यू ग्रामाटिका संस्कृडामिका” था।
2.
उसकी अप्रकाशित कृति के आधार पर जर्मन पादरी पौलिनस ने 1790 में संस्कृत का व्याकरण प्रकाशित किया जिसका नाम “सिद्ध रुबम्” स्यू ग्रामाटिका संस्कृडामिका” था।
3.
1. काव्य की किसी भी विधा (छांदस/अछांदस) के मौलिक प्रकाशित संग्रह (प्रकाशन-वर्ष का कोई बंधन नहीं) की दो प्रतियाँ अथवा मौलिकता प्रमाण-पत्र के साथ अप्रकाशित कृति (पाण्डुलिपि)।
4.
उसकी अप्रकाशित कृति के आधार पर जर्मन पादरी पौलिनस ने 1790 में संस्कृत का व्याकरण प्रकाशित किया जिसका नाम “ सिद्ध रुबम् ” स्यू ग्रामाटिका संस्कृडामिका ” था।
5.
1. काव्य की किसी भी विधा (छांदस/अछांदस) का मौलिक प्रकाशित संग्रह (प्रकाशन-वर्ष का कोई बंधन नहीं) अथवा मौलिकता प्रमाण-पत्र के साथ अप्रकाशित कृति (पाण्डुलिपि) अथवा न्यूनतम 15 फुटकर कविताएँ।
6.
दलित जी अपने जीवन भर छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य सेवा में संलग्न रहे | उन्होंने लगभर 800 से भी अधिक कविताओं का सृजन किया | उनकी महत्वपूर्ण कृति आज भी अप्रकाशित है, जिससे हम उनकी कृतियों से अपरिचित हैं | उनकी अप्रकाशित कृति प्रकाश में आये तो छत्तीसगढ़ी की श्रीवृद्धि होगी |